कहीं कभी तो कोई रास्ता निकलेगा
हेमन्त कुमार शर्मा
कहीं कभी तो कोई रास्ता निकलेगा,
अपना अपनों से कोई वास्ता निकलेगा।
जाँच लो हर रुत को हादसा निकलेगा,
गहरे दोस्तों में गहरा फ़ासला निकलेगा।
जीतेगा ज़रूर कहता है वह सच्चा है,
उसे क्या पता क्या फ़ैसला निकलेगा।
इस देह को बस एक देह ही समझा,
रुक कर देखने पर आस्ताँ निकलेगा।
जिस ज़मीन पर रेंगता रहा था मन भी,
कोई साहसी वहाँ से हाँफता निकलेगा।
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