जादू के हाथ

01-07-2025

जादू के हाथ

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 280, जुलाई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

शहर से कुछ दूरी पर था उसका गाँव। वह रोज़ शहर जाने की बात करता था। पिता कई बरसों से शहर जाकर पैसा ऊर्जित करते थे। वह मन ही मन सोचता रहता था। कब बड़ा होगा, कब शहर जाकर वह भी पैसा कमा पाएगा और इस पढ़ाई से छुटकारा मिलेगा। 

वह दसवीं में फ़ेल हुआ। शहर जाने, कमाने को लेकर वह प्रसन्न है। 

वहाँ पहुँचने पर उसे पता चला पिता मज़दूरी करते हैं। और लेबर चौंक पर मज़दूरी के लिए आते हैं। तभी कभी-कभी काम नहीं मिलने की वजह से वह घर जल्दी लौट आते थे। पर कुछ न कुछ वह खाने पीने की वस्तुएँ ले आते थे। माँ हँसी में उनके हाथों को जादू के हाथ कहती। 

 . . . आज उन जादू के हाथों का कारण ज्ञात हुआ। 

शाम होते होते उसके मन में आगे पढ़ने का विचार उत्पन्न हुआ। इस जादू के हाथों को सच में जादू के हाथ साबित करने के लिए। 

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