वर्षा
हेमन्त कुमार शर्मा
वर्षा तू डूब नहीं सकती,
डुबोती जी भरकर।
महल डुबाना तेरे वश बात नहीं,
झोपड़पट्टी डूबे खड़ी सारी रात यहीं।
मरता ग़रीब तिल तिल कर।
कृष्ण को तो तू पार लगाए,
सुदामा-से बन्धुओं को मार गिराए।
तेरी इस साधुता को प्रणाम जोड़ कर।
क्षमता विषमता में तब्दील,
सुख अभी दूर कोसों मील।
वर्षा दुख का पर्याय बनी मुख मोड़ कर।
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