बहुत हुई अब याद

01-05-2024

बहुत हुई अब याद

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

बहुत हुई अब याद, 
कभी तो मिलना हो। 
 
गए सजन परदेस, 
किया पर भेस, 
आने की गिनती भूले, 
अंसुवन बनी सेज। 
कभी तो संयोग का, 
खिलना हो। 
 
जाने पर दृष्टि धूमिल सी थी, 
कब लौटोगे, 
यह बात मुँह पर थी। 
ढाढ़स? 
सब नक़ली था, 
पिय का जाना असली था। 
और अब . . . उनकी याद . . . 
भर गई चोट का, 
जैसे फिर छिलना हो। 

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