मन भारी भारी सा है

01-06-2025

मन भारी भारी सा है

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

नगर के विराने में, 
मित्रों के सुनाने में। 
गुज़र गई आयु, 
अफ़सोस तारी सा है, 
मन भारी भारी सा है। 
 
सारे मग में, 
और, 
सारे जग में। 
लगता रहना, 
यहाँ उधारी सा है, 
मन भारी भारी सा है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
कविता
लघुकथा
नज़्म
सजल
ग़ज़ल
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में