ज़िन्दगी के गीतों की नुमाइश

01-01-2025

ज़िन्दगी के गीतों की नुमाइश

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 268, जनवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

कई बातें मन में दर्ज हो गईं, 
अच्छाई का वह फ़र्ज़ हो गईं। 
 
कोई आराम न आया चारागर, 
शायद यह दवा ही मर्ज़ हो गई। 
 
अपनों ने मदद की थी यारो, 
वह सब की सब क़र्ज़ हो गईं। 
 
ज़िन्दगी के गीतों की नुमाइश, 
पीड़ा के क्षणों की तर्ज़ हो गई। 
 
अपनी कहने में बड़ा झंझट, 
अभिव्यक्ति भी हर्ज हो गई। 

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