जीवन में
हेमन्त कुमार शर्मा
जीवन में कुछ भी खिलता नहीं,
कोई तो हो मित्र जो छलता नहीं।
औने-पौने दाम बाक़ी ईमान के,
ऊँचे हैं सिर बस बेईमान के।
हार गये तन मन,
अब ये भी खलता नहीं।
रहे सही होश जो थे बाक़ी,
उड़ गए तेरी बेरुख़ी से साक़ी।
बिन बाती के,
कहूँ क्या दीया बलता नहीं।
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