चित्त के रंग

15-07-2025

चित्त के रंग

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

चित्त के रंग बदल जाते हैं, 
हित के रंग बिखर जाते हैं। 
 
सब अपनी कहते हैं कथाएँ, 
मन में दबी जीवन की व्यथाएँ। 
दुख में समझो निखर जाते हैं, 
चित्त के रंग बदल जाते हैं। 
 
एक जीवन का मोल न समझा, 
एक जीवन का बोल न समझा। 
किस लिए किसलय निकल आते हैं। 
चित्त के रंग बिखर जाते हैं। 

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