कभी शाम का तबसरा

01-12-2025

कभी शाम का तबसरा

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मुझको मतलब ही नहीं, 
कोई अदावत भी नहीं। 
 
गाये थे गीत महफ़िल में, 
शून्य में सहमत भी नहीं। 
 
कभी शाम का तबसरा, 
दोस्तों में शोहरत भी नहीं। 
 
मेरे मन की क्यों सुने कोई, 
और ऐसी महारत भी नहीं। 
 
वादा खिलाफी नहीं थी मित्र, 
वादों की कोई ज़रूरत भी नहीं। 

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