नदी के पार जाना है
हेमन्त कुमार शर्मा
नदी के पार जाना है,
मल्लाह से पार पाना है।
हरेक बात का हल मिलेगा,
पिय पे निज हार जाना है।
फ़क़ीरी के आलम में कहा,
शून्य जीवन सार जाना है।
हज़ारों बार अपव्रत हुआ चाहे,
ज़िन्दगी फिर उभार लाना है।
सही का दर्शन सारहीन,
धन का सबने आभार माना है।
बही थी गंगा भी ऊँचे से,
हाँ नीचे हरिद्वार आना है।
सागर की लहरों को पता,
जल लौट हर बार आना है।
मिल गए अगर किसी भाँति,
आर ना फिर पार जाना है।
चहुँ ओर उसी को देखा,
अब क्या खार खाना है।
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