जीवन है और कुछ भी नहीं

01-04-2025

जीवन है और कुछ भी नहीं

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 274, अप्रैल प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बेहद है और कुछ भी नहीं, 
जीवन है और कुछ भी नहीं। 
 
दूर नहीं पास दिल के कहीं, 
वोह रहे और कुछ भी नहीं। 
 
आस बही बेरहम हो वहाँ, 
बूँद रही और कुछ भी नहीं। 
 
साँस वहाँ लेकर मुझे चला, 
साँस रहा और कुछ भी नहीं। 
 
हास नहीं था अगर था क्या
देख रहा और कुछ भी नहीं। 

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