हाथी सामान्य हो गया
हेमन्त कुमार शर्मा
सरकारी अस्पताल में अफ़रा-तफ़री मच गई। बाहर दरवाज़े पर एक शख़्स हाथी को लेकर खड़ा था।
“इसे मेन गेट से बाहर ले जाओ। यहाँ क्यों लाए?” सिक्योरिटी ने हड़काते हुए कहा।
हाथी के साथ आए व्यक्ति ने पाँच सौ के दो नोट लहराये। क्षण में सिक्योरिटी अनसिक्योरिटी हो गई।
“परेशान ना हो भाई। बस डॉक्टर साहब को बुला दो। कुछ मिनट का काम है, चला जाऊँगा। अगर मरीज़ अंदर आ सकता तो तुम्हें ना कहता,” अपने हाथी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा। और डॉक्टर को सौ रुपए देने के लिए खिसे से निकाल कर सिक्योरिटी के हाथ में रख दिए।
सौ की पत्ती देखकर डॉक्टर गंभीर मुद्रा में दौड़ा आया। हाथी वाले शख़्स के सामने तुरंत प्रकट हुआ और कहा, “महानुभाव इसे किसी पशु चिकित्सालय में ले जाओ। यहाँ तो इंसानों का इलाज होता है।”
“नहीं-नहीं डॉक्टर। वहाँ दिखा लिया। सब व्यर्थ। यह कमीना आजकल सत्य, अहिंसा की बातें करता फिरता है। शाकाहार का प्रचार करने की ज़िद पर अड़ा है। अपने मिले गन्नों में ही सब्र कर लेता है। और याददाश्त अपनी साथी लोगों से भी ज़्यादा है—लेकर, देने का विचार करता है।”
“इसको बड़ा गंभीर रोग है। यह सब गुण पागल होने की निशानी हैं। इसे किसी मनोविज्ञान के डॉक्टर की आवश्यकता है। वहाँ दिखाओ,” सरकारी डॉक्टर ने सुझाव दिया।
“वहीं से आ रहा हूँ। उन्होंने ने ही आपके पास भेजा है। आदमी का रक्त चढ़ाने को कहा है—प्राइवेट महँगे स्कूल के पढ़े-लिखे व्यक्ति का। यह दुर्गुण क्षण में दूर हो जाएँगे।”
“रक्त चढ़ जाएगा। एक्स्ट्रा पैसे लगेंगे,” डाॅक्टर ने कहा।
उस शख़्स ने हामी भरी।
और वह हाथी कुछ मिनटों में ही सामान्य हो गया।
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