बुझे हुए दीये पर कालस जैसे

01-12-2025

बुझे हुए दीये पर कालस जैसे

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बुझे हुए दीये पर
कालस जैसे, 
सुबह उठी यूँ नींद से। 
 
नगर में वसंत
कहीं खो गया। 
उजाड़ हुआ
शहर भीड़ में। 
 
शीत थरथराती है, 
और गर्मी जगमगाती है। 
वर्षा कटारी सी, 
फ़सल मध्य नदी
कभी तीर में। 

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