कोई एक बेचैनी सी

15-12-2024

कोई एक बेचैनी सी

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 
कोई एक बेचैनी सी मन में रहती है, 
तू आ जाए तो तेरे जाने की रहती है। 
 
उस बड़े इन्तज़ार के बाद दिखती सूरत, 
नदी कहाँ पल को भी स्थिर रहती है। 
 
बेक़रारी बेहिसाब बेइंतहा है अब साक़ी, 
यहाँ प्राणों की गति सुष्मना में बहती है। 
 
खेलता है चित्त स्मरण की गेंद से उधर, 
नाम की रटन वाणी में इधर रहती है। 
 
सच कहेगा तो झूठ समझेंगे सब यहाँ
बस्ती झूठों की इस नगरी में बसती है। 
 
तेरे हिस्से में रुसवाई आएगी ज़रूर, 
यह भीड़ है यह आवाज़ भी कसती है। 
 
कहेगा जिसमें पैसे नहीं फोकी बात, 
इस नए दौर में तो सच्चाई ससती है। 
 
यहाँ प्यासे हैं सब लोग क्या हैरानी, 
नदी जबकि शहर को छू के बहती है। 
 
तेरे इश्क़ में बड़ा बेचैन है साक़ी भी, 
उसकी आँखें इन्तज़ार में रहती है। 

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