यह बस बहुत तेज़ है

15-12-2025

यह बस बहुत तेज़ है

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 290, दिसंबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

खिड़की से बाहर के दृश्य, 
शीघ्र शीघ्र बदल रहे हैं। 
यह बस तेज़ बहुत है। 
 
हरियाली है, 
सूखी कीकर है, 
सड़क के किनारे
पानी का जोहड़ सा, 
उतावला पर ओर जाने को, 
पहली सी स्थिति पाने को। 
पर यह नज़ारा क्षण में बदले। 
यह बस तेज़ बहुत है। 
 
झोंपड़ियों के झुंड, 
नवीन ऊँची अट्टालिकाओं के पहाड़, 
अव्यवस्थिति गलियाँ
जैसे वन में पेड़। 
व्यक्ति निर्मम चेहरे वाले, 
नगर को खँगालती बस, 
तह को देख चिंतित पर, 
यह बस तेज़ बहुत है। 
 
गाँव में पसरे खेत, 
फ़सल की कोंपलें ठिठुरती, 
कोई इक्का-दुक्का परछाईं सी, 
कंबल ओढ़े दिखती, 
हाथ में कस्सी, 
मुँह में दातुन, 
खेत की तरफ़ जाती, 
कुछ देर देख कर, 
अपने गाँव का स्मरण हो उठा, 
एक क़तरा आँखों में, 
पर फिर वही बात, 
यह बस तेज़ बहुत है। 
यह बस तेज़ बहुत है। 

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