मेरा किरदार मुझे पता नहीं

01-07-2024

मेरा किरदार मुझे पता नहीं

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मेरा किरदार मुझे पता नहीं। 
मेरे शत्रु मुझे बेईमान कहते हैं, 
मेरे मित्र दबी ज़ुबान रहते हैं। 
 
और मन भी दूसरों की गवाही में है, 
आँखें रक़ीब की भाई में है। 
 
सारे रब्ब की तरह बर्ताव करते हैं, 
और उसकी लाठी की बात करते हैं। 
 
शायद अपनी बारी भूल जाते हैं, 
अपने करम भी दौड़ के आते हैं, 
 
संचित प्रारब्ध बन बरसेंगे। 
मेरे कष्ट प्रसन्नता दे रहे उनको, 
वह भी भोग को तरसेंगे। 
 
कितना भोगा निज ने, 
कितना अता नहीं। 
 
मेरा किरदार मुझे पता नहीं। 

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