उस नाम को सब माना

15-03-2025

उस नाम को सब माना

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 273, मार्च द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

एक उदासी मन को घेरे है, 
चित्त में निराशा के डेरे हैं। 
 
आश्चर्य पेड़ सूख गया था, 
पंछी के फिर भी बसेरे हैं। 
 
बहुत दिन से बरसे नहीं, 
ज़ुल्फ़ों के बादल घनेरे हैं। 
 
कौन हो गए हैं सुन यार, 
हम तो कब से तेरे हैं। 
 
बेपरवाही उनकी मार डाले, 
वह आए कितने सवेरे हैं। 
 
तेरी मेरी क़समें सब झूठी, 
मैं नहीं तुम नहीं बहुतेरे हैं। 
 
बादल बादल बूँद भरी है, 
बिन बरसे चले काहे के फेरे हैं। 
 
उस नाम को सब माना, 
वह अक्षर रेत में उकेरे हैं। 

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