निगाहें मिलाने चले थे

01-05-2025

निगाहें मिलाने चले थे

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

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निगाहें मिलाने चले थे, 
ग़मों को उठाने चले थे। 
 
बड़े शौक़ थे यार मेरे, 
अदावत मिटाने चले थे। 
 
किसी की कहानी किसी से, 
ग़मों की छुपाने चले थे। 
 
बड़े हैं यहाँ पर सभी तो, 
बग़ीचा सजाने चले थे। 
 
किसी को मिली हो बता दे, 
कि जन्नत बताने चले थे। 

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