निगाहें हैं मिली भी थी छुपा के

15-04-2025

निगाहें हैं मिली भी थी छुपा के

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 275, अप्रैल द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़्तीअ:    1222    1222    122
 
निगाहें हैं मिली भी थी छुपा के
बसे आँखों दिलों में भी सता के
 
बने हैं आप अपने सामने थे
सजाना तुमको आँखों में बसा के
 
लिखा है ख़त किसी लहजे में सारा
छुपाते हैं बहुत वे भी बता के
 
गुज़ारे थे यहाँ पल ग़ैर बन के
बसाया था जिन्हें अपना बना के
 
कहीं तू भी न आ जाए बुझी में
सुनाएगा धुआँ सब ओर जा के

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