दरिया है समन्दर नहीं

01-09-2024

दरिया है समन्दर नहीं

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

दरिया है समन्दर नहीं
गम्भीर कैसे होगा। 
 
लक्ष्य चूक गया
तीर तीर ही रहेगा, 
क्या अर्थ कि
वह तीर कैसे होगा। 
 
भूख ईमान पर
भारी पड़ गई, 
फिर फ़कीर
फ़क़ीर कैसे होगा। 
 
दूजों की पीड़ा में
हँसने लगा, 
तेरा मन
पीर कैसे होगा। 
 
क़ाफिया वज़न
बहुत कुछ ग़ायब, 
दोबारा मीर
कैसे होगा। 
 
पूरा जीवन शून्य
बिन्दु में बीत गया, 
शेष बहुत कम
अब लकीर कैसे होगा। 
 
ऊँचे ओहदे से
ग़ुरूर चिपटा है, 
अपने कहने से
हक़ीर कैसे होगा। 
 
आँसू बहुत कुछ
आँसू ही है, 
किसी के लिए
नीर कैसे होगा। 
 
समय की
दरियादिली है यहाँ, 
घर ख़र्च बामुश्किल
वीर कैसे होगा। 
 
रांझा दर बदर
ही फिरेगा, 
तेरी कही से
हीर कैसे होगा। 

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