मलबा

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

पहाड़ी इलाक़े में सड़क पर मलबा बिखरा था। रात मूसलाधार बारिश के बाद बड़ी-बड़ी चट्टानें दरक गई। आने जाने का रास्ता ब्लाॅक हो गया। प्रशासन ने किराये पर जे.सी.बी. लगा दी जो बड़ी काइयाँ क़िस्म की थी। कभी हवा ले जाती, कभी अन्य फाॅल्ट के कारण बन्द पड़ जाती। बूढ़ी हो गई थी। थकी माँदी। एक घंटे का काम दो दिन में निबटाती। किराये में अफ़सरान का भी कुछ हिस्सा होगा। 

चार दिन से रास्ता बन्द था। फोरी मदद नदारद थी। कोई भला मानस मलबा हटाने में दिखाई ना देता। केवल वह जे.सी.बी. सड़क के बीचों-बीच खड़ी दिखती। दो दिन वह दिन-रात चली थी। शायद अब गम्भीर बीमार हो गई थी। सूँ-साँ भी नहीं कर रही थी। 

लोकल अख़बार में तस्वीर सहित प्रशासन के ‘चुस्त’ कार्य को दिखलाया गया। अफ़सर लोगों ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया। तीन से चार मज़दूर मलबा हटाने के लिए लगा दिये। वह जे.सी.बी. की तरह आरामपरस्त थे। ज़्यादातर बीड़ी-तम्बाकू का सेवन करते हुए ही पाए गए। 

पन्द्रह दिन बाद बड़े अख़बार में समाचार छप गया। जे.सी.बी. को ठीक करा फिर उसे काम सौंप दिया। दोपहिया वाहन ही आने जाने में सक्षम हो सके। वह भी एक समय में एक ही तरफ़ के। 

महीने बाद कुछेक ऐन.जी.ओ.; लोकभलाई वकील कोर्ट में इस ‘चुस्त’ रवैये के ख़िलाफ़ अपील दायर कर बैठे कि जाँच हो ऊपर से आया पैसा विपदाग्रस्त रोड पर लग भी रहा है कि नहीं। 

ऐन.जी.ओ.; लोकभलाई वकील प्रशासन की जाँच में आ गए। उनके खातों की जाँच तुरंत आरंभ हो गई। एक-आधा धरा भी गया। 

सन्नाटा पसरा है। कुछ मज़दूर और वह बूढ़ी जे.सी.बी. रुक-रुक के आवाज़ कर रहे थे। 

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