एक तो मैं इन सुधारकों से बड़ा परेशान हूँ

01-10-2023

एक तो मैं इन सुधारकों से बड़ा परेशान हूँ

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

पृथ्वी की गति पर आक्षेप करते हुए लोकल नेता बद्री प्रसाद ने कहा, “कुछ सुधार की अपेक्षा है। प्रेमिका का हाथ, हाथ में आने पर दिन जल्दी बीतता है और एक मिनट की प्रतीक्षा सदियों में उतर जाती है। इसमें उसकी गति का हाथ है। कम-ज़्यादा, ज़्यादा-कम हो जाती है। उसे सुधारना चाहिए। वैज्ञानिकों को इस पर विचार करना चाहिए। पैसे की चिंता ना करें। प्रशासन द्वारा रिसर्च कर लगाने का प्रस्ताव रखवा देंगे।”

सदियों से सुधारकों की एक बड़ी फ़ौज भारत में उत्पन्न होती रही है। अन्य देश भी पीछे नहीं है। परन्तु अपने देश की बात निराली है—एक पत्थर उठाते ही सुधारक देवता सैकड़ों की तादाद में प्रकट हो जाते हैं। 

मुनाफ़ के चित्र के रंग देखकर असब्रे शुभचिंतक ने कहा, “यहाँ अगर लाल रंग रखते और उधर हरा, चित्र लाजवाब बनता।”

गधे को सामान ढोते देख चमगादड़ ने कहा, “मेरी तरह बन। उल्टा लटक-लटक कर सारी दुनिया को उल्टा लटकवा दिया।”

गधे ने अपने कान हिलाये, दाँत दिखाए, जो मैले-कुचले भद्दे थे। जबकि वह पान तंबाकू कुछ ना खाता। 

“दाँत भी माँज लिया करो,” सही लाल ने ग़लती से उसकी पूँछ की तरफ़ हो कहा। 

दोनों टाँगों का अचूक वार। कई दिन बिस्तर पर पड़े रहे। वहाँ भी कोई सुधारक पहुँच गया। गधे की पिछाड़ी से दूर रहने का उन्हें ज्ञान दिया, कुछ उदाहरण दिए और पत्नी के मारे पतियों का जीवन सुधारने की बात पर वज़न देते जा रहे थे। वह सुबह ही पत्नी से मार खाकर यहाँ आ रहे थे। 

समुद्र में लबालब पानी को देखकर सुधारकनुमा नेता ने पब्लिक में कहा, “पानी की बड़ी-बड़ी नहर बनाकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में समुद्र से पानी पहुँचाया जाना चाहिए।”

पत्नी ने घर पर आते ही बेलन से कुटाई की और पूछा, “तुम्हारा पप्पा पहुँचाएगे जल और जल भी नमक भरा। क्या खेत बर्बाद करने हैं?”

सुधारकनुमा नेता चुप ना रहा। सिर पर लोहे की छोटी कढ़ाई रखकर, फिर एक और विचार रखा, “आर.ओ. लगवाकर प्रशासन को यह महत् कार्य करवाना चाहिए।”

इस बार पीठ पर वार था। धमाका बड़ा था। वह ख़ामोश हो बाहर घर से निकले ज़माने भर को सुधार की घुट्टी देने। 

कवियों और कहानी धुरंधरों में ‘पैठ’ बिठाकर बिक्री चंद आजकल धक्के खाते हुए सोशल मीडिया में आ पहुँचे। उनके ज्ञान के चर्चे किसी भी जगह नहीं थे। और हिंदी व्याकरण सम्बंधी अपने ज्ञान को जहाँ-तहाँ व्यक्त करते। फलाने गाने में यह शब्द ग़लत है, वह शब्द ठीक नहीं है। हैं, है की बातें करते। ख़ुद नहाने से परहेज़ और दूसरों को सही तरह से नहाने और पोंछने का ज्ञान देते। सुधारक की ऊँची श्रेणी में थे। हिंदी में कम और अंग्रेज़ी में ज़्यादा लिखते। चाहे ग़लत ही सही। नाम भी अपना इंग्लिश में, साइन भी इंग्लिश, कपड़े लत्ते सब इंग्लिश से प्रभावित। यह कर सकते हैं पर ज्ञान का दंभ ना भरें। सुधारक की मारक श्रेणी में थे। अपने को सरस्वती का पुत्र मानते। पर उनके छद्म को कोई नहीं जानता। 

एक धार्मिक सुधारक। यह बड़े कठिन श्रेणी के प्राणी हैं। रात को इंग्लिश की चढ़ाते हैं। सुबह से शाम चेलों को चंग पर चढ़ाते हैं। लोगों को मूर्ख बनाते हैं। सदाचार का कीर्तन और लेडीज़ पर दृष्टि रखते हैं। और यह भी दृष्टि रखते हैं कि उन पर कोई दृष्टि ना रखे। साफ़गोई से काम करना। साफ़ सुथरा। 

एक दिन कहने लगे, “भाई साहब, धार्मिक स्थल पर तुम जाते नहीं। सूफ़ी तुम हो। बीड़ी तम्बाकू चखते नहीं। किसी लड़की के प्रेम में हो नहीं। कैसे भक्ति रस में डुबोगे। यहाँ के प्रेम से ही तो परम प्रेम तक पहुँचोगे।”

 कहते कहते उनके मुँह से चैनी खैनी की बदबू आने लगी। उन्हें दूर से सलाम। 

 शराबी को अन्य शराबी ने शराब छोड़ने का नुस्ख़ा बताया। फिर सामने रखे गिलास में एक पैग और दोहराया। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में