पानी

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

हम भी ज़िन्दा हैं यह पता चल जाए, 
अगर फिर से आज बीता कल आए। 
 
यह बारिश किसी का सन्देश ले आई, 
देख तो थे हृदय कितने यहाँ छल पाए। 
 
आग आश्चर्य में है देख कर यह सब, 
जल से भी घर जब जहाँ जल जाए। 
 
वह प्रलय का ही समय होगा शायद, 
प्रार्थना स्वीकार पर जिस पल आए। 
 
कई मंज़िल होगी उसकी कोठी भी, 
झूठ का गड्ढा जितना उतना फल पाए। 

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