नगर से दूर एकांत में
हेमन्त कुमार शर्मा
शैशव की किलकारियाँ,
सरल हृदय की चिंगारियाँ,
आँखों की रहशुमारियाँ।
मीठी धूप सी सुशांत में।
तीखे बाण बात के,
सोये तीर रात के,
भूलें विचार मात के।
रूकें कुछ सान्त में।
गाता भँवरा फूल मुस्काए,
कल कल पानी नाद सुनाए,
चूल्हे पर रोटी सखी बनाए।
विश्वास जागे मन भ्रांत में।
कारा संदेह की छुटे टूटे जी भर के,
झड़े पीत पत्ते आए थे स्वाँग भर के,
करें विसर्जित उलझन सुलझन कर के।
रखें सुकून भरे पल मन आक्रांत में।
छोटी सी कुटिया छप्पर का ओढ़ना,
पानी नित कुएँ से भरना,
काम सब अपने ही करना।
फिर उत्साह पनपे अधीर क्लांत में।
नगर से दूर एकांत में।
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