कर्ण की दृष्टि
हेमन्त कुमार शर्मा
मन ने कहा सर्वश्रेष्ठ है तू। चिन्ता ना कर। किसी से भय करने की आवश्यकता नहीं। युद्ध में विजय होगी। जीता—भूमि भोगने के लिए मिलेगी। हारा—स्वर्ग का आरोहण—दोनों ही स्थिति में लाभ। शास्त्र का अनुमोदन है। अन्तर की ध्वनि शरीर के हरेक कोने तक पहुँच गई। कर्ण का मन आशंकित था पर विजय? इसका विश्वास उसे प्रेरित करने में सक्षम।
रथ रक्त के कीचड़ में फँस गया। हटाते हुए कर्ण का हनन किया गया। कवच विहीन, युद्ध के लिए लालायित, पीठ पर वार।
जीत के लिए केवल साहस और विश्वास नहीं, चालाकी का मिश्रण आवश्यक है। केवल विजय ही जिनका लक्ष्य हो वह जानते हुए भी जानते नहीं।
पत्थरा गई आँखों से अर्जुन और कृष्ण को देखा। अपने सारथी शल्य पर दृष्टि को फेरा और शान्त हो गया।
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