जिस नगरी में वैर न प्रीत

01-09-2025

जिस नगरी में वैर न प्रीत

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

जिस नगरी में वैर न प्रीत, 
उस नगरी में हार क्या जीत। 
 
भेद भरी थी उनकी आँखें, 
क्या ग्रीष्म है है क्या शीत। 
 
बोल बड़े गुमसुम रहते हैं, 
अपने में अपनो से भीत। 
 
रोग बहुत इस स्नेह के गहरे, 
सुख के बाद दुख की रीत। 
 
देख मौसम पल में बदले हैं, 
जैसे अब बदले हैं मीत। 

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