फिर हार जाता हूँ

01-12-2025

फिर हार जाता हूँ

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

तेरी मुस्कुराहट, 
फिर हार जाता हूँ। 
याद करता हूँ
कभी अपना मुस्कुराना, 
फिर हार जाता हूँ। 
 
लो लब सी लिए हैं, 
एक और ग़म जब आता है, 
और अपना कोई मुस्कुराता, 
फिर हार जाता हूँ। 
 
बेहद रहा मलाल, 
पूछता रह वह हाल, 
सभी पर हूँ कर जाता हूँ, 
फिर हार जाता हूँ। 
 
कई दफ़े, 
हाँ कई बार, 
घर छोड़ने का मन बनाता हूँ, 
तू कोई
ज़रूरत की लिस्ट थमाती है, 
शिकन माथे पर लाता हूँ, 
फिर . . . हार जाता हूँ। 
 
लगता ही नहीं बच्चे बड़े हुए, 
हाँ शीशे में देखता हूँ, 
दाढ़ी सफ़ेद हुई, 
मुँह पिचक गया, 
बस पेट बढ़ा पाता हूँ, 
आगे क्या कहूँ, 
फिर चुप हो जाता हूँ। 
 
तेरी मुस्कुराहट, 
फिर हार जाता हूँ। 

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