जले हुए हाथों ने

15-05-2025

जले हुए हाथों ने

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

फ़सल भी बकाया है, 
असल भी बकाया है। 
 
रात सहमी रही थी, 
दिन कुछ मुस्कुराया है। 
 
जले हुए हाथों ने, 
मशालों को उठाया है। 
 
बेख़्याली थी भय से, 
साहस याद आया है। 
 
इच्छाओं का सागर है, 
जीवन ने ख़ूब रुलाया है। 

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