प्रेम की कसौटी पर
हेमन्त कुमार शर्मा
प्रेम की कसौटी पर
दृष्टि रही रोटी पर।
आहट उन चपल क़दमों की,
मित्रों से पाए बहु सदमों की।
साँप स्वच्छंद विचरण करे,
किसकी कृपा छुपी सोटी पर।
भावावेश सब कह डाला,
लेखन था कितना आला।
ग़ुस्सा क्योंकर था,
सब तौर से नोंची बोटी पर।
रात किम् कर्त्तव्य विमूढ़ थी,
दूरी के छंदों से रूढ़ थी।
ऊपर से आदेश था,
क्या कहें राशन की कटौती पर।
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