ना-शुक्रा
हेमन्त कुमार शर्मा
ना-शुक्रा ही सही,
शुक्र अल्लाह का।
पैसे लेकर ही उतारा,
एहसान मल्लाह का।
आदाब ना झूठ को दिया,
पाते हैं इस गुनाह का।
ज़मीर उतारा सिर से,
असर आबोहवा का।
पानी की इक बूँद समन्दर,
तलबगार वो इक आह का।
सर का बोझ दिल का,
शाम को पहुँचा सुबह का।
तेरे रुख़्सार रूखे रूखे,
पेड़ कोई जैसे राह का।
ख़ुशामद नहीं आती,
और तलबगार नहीं सलाह का।
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