अब किनारों की ज़रूरत नहीं

15-03-2025

अब किनारों की ज़रूरत नहीं

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 273, मार्च द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

अब किनारों की ज़रूरत ही नहीं, 
इन मझधारों से फ़ुर्सत ही नहीं। 
 
बेक़रारी का आलम रहे अच्छा है, 
मन चैन से तो परिचित ही नहीं। 
 
कहते हैं वह आते हैं आते ही नहीं, 
फिर क़यामत तो निश्चित भी नहीं। 
 
वह दीया जलाए तो दिवाली होती है, 
घर जल गया कहा उल्फ़त ही नहीं। 
  
दिल में राम भी है ज़रा ग़ौर से देखो, 
सिर्फ़ छुप के बैठी अदावत ही नहीं। 

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