मन इन्द्रधनुष
हेमन्त कुमार शर्मा
मन इंद्रधनुष पे किसने भरे रंग,
हृदय स्थान पे कौन उत्पन्न करता उमंग।
स्यात् वह कोई आदृश्य चित्रकार,
या फिर कोई अद्वितीय रम्य आकार।
भरे संसार में देखो कैसे करता निसंग।
वृक्ष छाया सम प्रिय ग्रीष्म से आकुलाए को,
प्रिय जैसे निज गृह दूर से लौट के आए को।
बिन देखे ही उसे सांसारिक मोह हो रहा भंग।
अब तो मुखाम्बुज प्रकट करो अदृश्य,
देखो मन हुआ जाता है शूल सा कृश्य।
छुप के मन मोहना कैसा ये प्रेम का पुलकित ढंग।
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