पार हाला है
हेमन्त कुमार शर्मा
इस फ़िक्र ने मार डाला है,
एक ज़िक्र ने मार डाला है।
बस दिल तो हार डाला था,
फिर दिल पे हार डाला है।
उस सच को आज़माया है,
सब सिर का भार डाला है।
कुछ रचना फाड़ डाली थी,
कुछ कचरा झाड़ डाला है।
गुल मिलने का सहारा था,
पर सब का सार छाला है।
किस मन को पार तारा था,
वह कहता पार हाला है।
2 टिप्पणियाँ
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आप के स्नेह का आभार व्यक्त करता हूॅं। हृदय से धन्यवाद। आपका आशीर्वाद ऐसा ही बना रहे। मेरी ओर से प्रयास रहेगा। ----हेमन्त।
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हेमन्त व्यक्तिगत टिप्पणी कर रहा हूँ। रचना के शीर्षक से से ही जिज्ञासा पैदा हो गई थी क्योंकि हरिवंश राय बच्चन की कविता "उस पार क्या होगा" और "मधुशाला" दिमाग़ में कौंध गईं। भावों की सुंदरता के साथ विचारों की गहराई हर पंक्ति में है। मन कर रहा है कि इसकी "रचना समीक्षा" लिखूँ। एक एक पंक्ति आपने वाक़ई परिश्रम से गढ़ी है, दिखाई देता है। कम शब्दों में बहुत कुछ कह देना कठिन होता। प्रायः लेखक अधिक शब्दों में कुछ भी न कहने के कलाकार होते हैं। हार्दिक बधाई! हाँ, रचना समीक्षा लिखने की बात गम्भीरता से कह रहा हूँ।
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