फिर किसी रोज़ मुलाक़ात होगी

01-03-2025

फिर किसी रोज़ मुलाक़ात होगी

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 272, मार्च प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

फिर किसी रोज़ मुलाक़ात होगी, 
फिर न यह दिन न यह रात होगी। 
 
फिर कोई खो जाएगा अपनों में, 
फिर कहीं आँखों से बरसात होगी। 
 
जीत का तजुर्बा अगर करना है तुमको, 
कईं दफ़ा गिरोगे कईं दफ़ा मात होगी। 
 
किस वक़्त तुम ने पुकारा है साक़ी, 
शाम के बाद फिर से रात होगी। 
 
जिसके लिए विराने में रोता है फ़क़ीर, 
उसके लिए भूली-बिसरी बात होगी। 

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