फ़ुल वॉल्यूम

01-09-2023

फ़ुल वॉल्यूम

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

मन्दिर नया था। और लाउडस्पीकर सुबह से शाम तक हाज़िरी दे रहे थे। ‘फ़ुल वॉल्यूम’ में। किसी व्यक्ति ने कहा कि दोपहर के बाद ‘लेडिज़’ लोग कीर्तन-भजन कर लिया करें। जल्दी ही कीर्तन भी स्पीकर महोदय की शरण में था। 

घर के काम से जान छूटी और छोटे बच्चों को मेले का वातावरण प्राप्त। घर के अन्य लोग कोई ज़्यादा विरोध ना कर पाए। इन सब में धार्मिक ‘इम्यूनिटी’ जो थी। लाउडस्पीकर से आहत हो कर आसपास जो घर थे उनके कान मूर्छित हो जाते। जैसे ‘एनस्थिसीया’ दे दिया गया हो। 

सुबह और साँझ के समय चित्त की कुछ ऐसी अवस्था होती है कि वह थोड़े प्रयास से शान्त और एकाग्र हो सकता है। सुबह धार्मिक ‘सॉन्ग', साँझ को कीर्तन। वह भी बेसुरी आवाज़ में। अशांत ही हो सकता था। 

एक दिन तो हद ही हो गई। ‘भोले आजा, भोले आजा’ यही दोहराते सब कीर्तन कर रहे थे। पीछे से कोई बच्चा ज़ोर से चिल्लाता ‘आजा, आजा’। वह आया हो या ना आया हो। पर कच्चे मौसम और बारिश के कारण साँप निकल आया।

मन्दिर से ज़्यादातर लोग अतिशीघ्र भाग खड़े हुए। दो-एक साहसी थे। साँप को पकड़ जंगल में छोड़ आए। 

इतनी तेज आवाज़ में कीर्तन होता था। कान ना होते हुए भी साँप भड़क के मन्दिर के भीतर तक आ गया। शायद कहता हो, “मेरे बाप बन्द करो सब।” आसपास के लोग ऐसी बातें करते पाए गए। 

कोई शायद बड़ा भक्त होगा। घंटा नाद हाथ में आते ही पता नहीं कहाँ से ताक़त आती थी। बजाता ही जाता। मोटा इतना उठते-बैठते उसे डबल श्रम करना पड़ता होगा। साँस फूल जाती होगी। 

इन्हीं सबके मध्य करण अजय को काँवड़ लाने के लिए मना रहा था। पहले अन्य मंदिर में कोई दो बार जल चढ़ा चुके थे। इस बार अजय का मन नहीं था। पर नया मंदिर, जो अपने मोहल्ले में ही बन गया था। वहाँ हरिद्वार से जल लाकर चढ़ाने को उतावला हो रहा था करण, “लास्ट बार चल पड़। तुम्हारे कारण ही तो रुका हुआ हूँ। सब जा चुके हैं,” मनाते हुए कहा।

अजय ने कमज़ोर सी आवाज़ में धीमे से जवाब दिया, “यार मन नहीं मानता। शरीर ठीक से काम नहीं कर रहा। नींद भी ठीक से नहीं आ रही। अभी बुख़ार ठीक हुआ है और दिन में यह लाउडस्पीकर फ़ुल वॉल्यूम में चलता है। इससे सदा रहने वाला सिर दर्द भी हो गया। पता नहीं कोई घंटा-नाद भी लगातार बजाता है। सीधा सिर में ही बजता है। दवा भी काम करना बंद कर गई है।”

“अरे, चल ना यार। कितने मिन्नतें करवायेगा। हाड़े हाड़े . . . बस एक बार चल पड़। फिर कभी नहीं कहूँगा।”

लगभग ढाई सौ मील दूर हरिद्वार। वहाँ से जल लाना। बुख़ार उतर गया था पर कमज़ोरी बहुत थी। करण का बार-बार ज़ोर देना, ना कैसे कर पाता, “अच्छा चलता हूँ। पर अब वहाँ बस में ही पहुँचना होगा,” अजय ने कहा। 

“मैंने सब इंतज़ाम कर दिया है। साथ के गाँव से टैम्पो जाने वाला है। उस में चलेंगे और वहाँ अपनी टोली में शामिल हो जाएँगे,” करण की आँखों में प्रसन्नता की झलक थी। 

शाम तक सब बंदोबस्त हो गया। वह दूसरे गाँव के लोगों के साथ हरिद्वार पहुँच गए। और अपनी टोली में शामिल हो गए। ‘बम, बम’ का नारा बुलंद करते हर की पौड़ी से जल भरकर करण और अजय चल पड़े। रास्ते में कई जगह रुके और आराम किया। जगह-जगह काँवड़ियों के लिए शिवर लगे हुए थे जो उनकी सेवा में कोई कसर न छोड़ते। कुछ भंगेड़ी नशे की पिनाक में हुल्लड़बाज़ी करते भी देखे गए थे। परन्तु अधिकांश सही काँवड़िए इस यात्रा को कर रहे थे। वह अपने क़दमों को तालबद्ध करके चल पड़ते थे। 

अंतिम पड़ाव पर थे दोनों। अजय के पैर सूज गए थे रास्ते में तबीयत ख़राब हो गई थी उल्टी बार-बार हो रही थी। पर वह अपनी मंज़िल गाँव के शिव मंदिर तक किसी भाँति पहुँचना चाहता था। फिर चाहे कुछ भी हो। भाँग धतूरे की भरी सिगरेट करण ने अजय की ओर बढ़ाई। उसने उसे मना कर दिया। 

“अजय क्या किसी को घर से बुलाऊँ? तुझे ले जाए।” करण घबरा गया था उसकी हालत देख कर। और वह उसे बड़ी मान-मनौव्वल करके ही तो लाया था। उसके घरवालों को क्या जवाब देगा? उनकी टोली गाँव से कुछ दूरी पर ही रुकी थी। वह सब आराम करने लगे। 

अजय ने कहा, “यार सिर में बड़ी तेज़ दर्द हो रहा है।” पर डीजे की आवाज़ और भाँग के नशे के कारण करण को कुछ ना सुनाई दिया। थक-हारकर के विजय ने अपनी जेब में से हरे पन्ने वाली गोली निकाली और पास रखी बोतल में से पानी लेकर गोली गटक ली। फिर सोने का प्रयत्न करने लगा। 

डीजे की धम्म धम्म की आवाज़ सर की किसी नस को साथ ही तेज़ी से धम्म धम्म करा रही थी। अजय झल्लाकर क्रोधवश चिल्लाते हुए बैठ गया। माथे को कस के दोनों हाथों से पकड़ लिया। नाक से ख़ून बहने लगा और पीछे को लुढ़क गया। थोड़ी देर में करण की पीनक भी उतर गई। साथ पड़े अजय को झंझोड़ा पर कोई हलचल न हुई। वह घबरा गया। आनन-फ़ानन में डॉक्टर को बुलाया गया। जिसने उसे मृत घोषित कर दिया। करण को काटो तो ख़ून न था। जल के पात्र दूर खूँटी पर टँगे थे। साथ में'बम बम’ के ऊँचे ऊँचे उद्घघोष और डीजे स्पीकरों की फ़ुल वॉल्यूम आवाज़ थी। 

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