काग़ज़ की कश्ती

15-12-2023

काग़ज़ की कश्ती

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

काग़ज़ की कश्ती छोड़ मियाँ, 
किसी बच्चे को पत्थर तोड़ते देखा है। 
 
सारी लकीरें घिस गई, 
कहीं कोई क़िस्मत की उभरती रेखा है। 
 
दिल, जिगर, निगाह की ही बात, 
पेट कब से अनदेखा है। 
 
सब ऊँचाई वालों का जाल, 
ये जो कहते पिछले जनम का लेखा है। 

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