एक पटाखा फूट गया
हेमन्त कुमार शर्मा
एक पटाखा फूट गया।
बच्चे की प्रसन्नता से।
और दिलासा यही है
आज फिर रोटी बन गई,
इससे बड़ी दिवाली और नहीं।
इस जर्जर हो रहे
मकान के मुख पर,
एक बल्ब जगमगाया,
बहुत दिनों के बाद,
इतनी रोशनी
बहुत है,
दीवारों पर लकीरें दिखने लगी है।
फिरकी, फुलझड़ी, अनार
अब इनकी चिन्ता नहीं,
इच्छा ही मर गई,
क्या अब शाम की प्रतीक्षा,
कोई बैठा नहीं मन।
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