वो साइकिल

15-12-2023

वो साइकिल

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

उन दिनों की बात है, 
जेब जब ख़ाली थी, 
हाथ बस ताली थी। 
दुनिया ख़रीदने की इच्छा, 
मन था कितना सच्चा। 
 
बस साइकिल ही तो थी। 
जिसमें मन अड़ गया था, 
अपने पिता से लड़ गया था। 
वह समझाते, 
अपनी विवशता, 
दिखाते। 
माँ के स्नेही कर, 
पीठ सहलाते। 
 
माना पर टीस रही, 
मन में रीस रही। 
 
गुपचुप पिता ने, 
अपने पिता से कहकर। 
अपनी पुरानी साइकिल, 
जिसका चिमटा टूटा था। 
गाँव से मँगा कर, 
कुछ चलने योग्य कर, 
मिस्त्री ने ठीक कर, 
घर पहुँचा दी। 
बरसों साथ रही, 
मित्र बनकर। 
 
अब वह रोना नहीं है, 
पर पिता का होना नहीं है। 
माँ के आँचल का, 
बिछौना नहीं है। 
ख़रीद सकता अब सब बढ़िया, 
पर मन में अब वह बच्चा नहीं है। 

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