इस शहर की कोई बात कहो

01-02-2025

इस शहर की कोई बात कहो

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

इस शहर की कोई बात कहो, 
एक ग़ज़ल में कोई सजल कहो। 
 
बहते गलियों के नाले से पूछो, 
इन गलियों में क्यों आए कहो। 
 
माना महबूब का घर होगा, 
दिल विराने में क्यों बैठे कहो। 
 
अब हर शख़्स से एक दूरी है, 
मन पिय की कोई बात कहो। 
 
बैठे बैठे किसे पुकारा करते हो, 
अपनी धुन में चाहे पागल कहो। 
 
वह सबका सब के दिल में है, 
सर्दी गर्मी चाहे रुत बादल कहो। 

हिरण की परख ऊँचों को भी नहीं, 
मन भटका है मैं भटका न कहो। 

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