जाँच पड़ताल
हेमन्त कुमार शर्मा
स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी मुआयना करने निकले थे। घर घर जाकर देखेंगे कि कहीं पानी रुका हुआ तो नहीं है। मच्छरों के लारवा जहाँ भी बरामद होंगे वहीं चालान काट दिया जाएगा।
गली का पहला जर्जर हालत में ग्यासु का मकान था। वर्षों से कोई मरम्मत नहीं हुई थी। सफ़ेदी लगभग उतर चुकी थी। दीवारें ईंटों के मुँह दिखाने लगी थी। अंदर का प्लस्तर टूट कर गिर रहा था। एक कमरे में दरार आ गई थी। इस मकान के दरवाज़े पर स्वास्थ्य विभाग की टीम खड़ी हो गई थी।
द्वार पर दस्तक दी गई। ग्यासु पुराने ज़माने का। कुछ पीस बचे थे। वैसे मकान जर्जर अनेक थे। पर पहले पड़ा—पहले दस्तक।
“कुन है? आराम बी नइ करने देता,” दरवाज़े की कुंडी खोलते हुए बड़बड़ाया।
“बाबा, घर की जाँच करनी है। कहीं पानी-वानी तो नहीं खड़ा। डेंगू बुख़ार का फिर ख़तरा मँडरा रहा है।”
“सबकी कर रये ओ या मुजी को जाँच में लिया ऐ।”
“न, न, बाबा। स्वास्थ्य विभाग सबके लिए बराबर है। चाहे सरकारी अस्पताल में आकर देख लो।”
“अबे, हमें तरेड़ दे रा ए। हमें सब पता है। तीन मँजिला मकान का मालिक शमसु, जिसने कबाड़ में बड़ा माल बनाया ऐ, उसे वि आई पी मुलाकात। अमे दवा तक बाअर की। व बी मैंगी, मैंगी। शब पिसे का केल ऐ।”
“अरे, बाबा कहीं और गए होगे। हम सब तो ईमानदार हैं। क्यों हैं न?” मुख्य कर्मचारी ने साथ आए सहायकों की तरफ़ देख कर कहा। सारों ने ऊपर नीचे गर्दन हिला कर और लंबी ‘हूँ’ भर कर हामी भरी।
“रैन दो, रैन दो। मेरी बीबी पिछली बार बुखार से मर गई। शारे टैस्ट बाहर के लिके। रिपोर्ट आने तक वह टैं बोल गई। तुमे पर विस्वास किसे करूँ?”
“अरे, किस काम पर लगा दिया हमें। आगे भी जाना है। ज़रा हटो। बाथरूम कहाँ है। कूलर कहाँ है।”
“बस सिधे सिधारे जाओ। रूकना नि। शामने इ नआने का इंतजाम ऐ। कूलड़ की एक पंकड़ी टुटी उइ ऐ। व सामने ऐ।”
बाथरूम जी भर के गंदा था। महीन मच्छर। सारी दीवार पर चस्पा थे। बाथरूम की छोड़ो सारे कमरे जाँचे सब बरसात में नमी युक्त थे। मच्छरों की भरमार। सबका जी कच्चा होने लगा।
कूलर को उघाड़ा। मच्छर ही मच्छर। छत पर पानी की टंकी लीक थी। छत का बहुत भाग पानी से तर था। बारिश हल्की हल्की पड़नी शुरू हो गई थी। सब फटाफट सीढ़ियाँ उतर आए।
मोटा होने की वजह मुख्य कर्मचारी सीढ़ी से फिसल गया। ठीक-ठाक चोटें आई।
ग़ुस्से में ग्यासु का चालान काटने को उतारू।
“अबी चालान काटो चाहे कुछ बी करो। अपने पास पिसे ऐ नइ। चाहे जो मर्जी कर लै।”
फटे पुराने कपड़े और हँसीनुमा चेहरा देख कर चोट के बावजूद हँसी निकल गई मुख्य कर्मचारी की। कुछ मच्छरों ने भी परेशान कर दिया था। सो उसने कुछ कार्रवाई नहीं की। पर जाते जाते यह अवश्य कहा, “जल्दी ही अस्पताल में मिलना होगा।”
“हाँ, हाँ। जरूर। साथ वाली सड़क का बी देक लेना। गली से बाअर निकलते इ। अबी तक पूरी नइ उइ। मिट्टी खोद के रक दी। पहले ठेकेदार का बी चलान काट देना। आगे नीचली कलोनी वाले बरसात का पानी नइ जान देते। नक्का लगा दिया। अबी मच्छरों की कलोनी बड़ी हो गई ऐ। मेरे मकान की दिवालें इन से बरी हुई हैं।” ग्यासु तपा हुआ था। जो मन में आया कहता रहा।
सारी स्वास्थ्य टीम गली के अगले मकान से जाँच कर आगे की तरफ़ बढ़ी।
आगे परचून की दुकान थी। जालों से भरी हुई। जालों में कुछ मच्छरों का शिकार भी हुआ दिखाई दे रहा था। टीम लाला से उलझ गई उसने अपने मकान में घुसने भी नहीं दिया। पीछे दुकान के मकान था। उसे उनकी आई डी पर विश्वास नहीं था। शक्ल भी नहीं पहचानता था। वह कोई सरकारी अस्पताल में थोड़े जाता था। वह प्राइवेट क्लीनिक का मरीज़ था। सरकारी दवा दारू पर उसे कम विश्वास था।
उसने भी उसी बाहर वाली सड़क का ज़िक्र किया कि वहीं से मच्छर पधारते हैं। उन के घर में साफ़-सफ़ाई का ख़ूब ख़्याल रखा जाता है। मच्छर क्रीम, लिक्विड, मच्छरों के भगाने की अगरबत्ती का वह ख़ूब प्रयोग करता है। भले कैंसर से मर जाए पर मच्छर जैसे अदना जीव से मरना गवारा नहीं।
शाम तक इसी तरह से भिन्न-भिन्न प्राणियों से मिलते-मिलाते स्वास्थ्य टीम महल्ले की गली से बाहर निकल रही थी। बाहर निकलते हुए उसी पहले मकान के बाहर भीड़ देख रुक गए। पता चला ग्यासु चल बसा। कई दिन से बुख़ार से तपा रहता था। कैमिस्ट से दवा लाता। गोली खाने पर बुख़ार उतर जाता।
स्वास्थ्य कर्मचारियों ने चलने में ही भलाई समझी। बाहर सड़क पर जाते हुए वहाँ सड़क चौड़ी करने के लिए ज़मीन खोदी हुई थी। वहाँ पानी रुका हुआ था। लारवा भरा हुआ था। पर वह क्या कर सकते थे! अन्त में वह छोटे-मोटे कर्मचारी ही तो ठहरे। ठेकेदार से कहाँ झगड़ा मोल ले सकते थे।
बहुत सी चीखें ज़ज्ब हैं इन दिवारों में,
बहुत से पतझड़ बिखरे इन बहारों में।
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