चर्चा आम थी

15-10-2024

चर्चा आम थी

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 263, अक्टूबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

चर्चा आम थी सुबह से शाम थी, 
नहीं होश महफ़िल तेरे नाम थी। 
 
शहर के वली सब पास हो गए, 
गाँव की फ़ेल सारी अवाम थी। 
 
नक़ली हक़ीक़त दिखा के जीता, 
पाँच साल छुपे कोशिशें तमाम थी। 
 
बादल घना था गरजा बरसा नहीं, 
पर एक बदली बरसी पूरी शाम थी। 
 
थक कर आख़िर ज़मीन बेच दी, 
पेशकश भी मुँह माँगे दाम थी। 

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