मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ
हेमन्त कुमार शर्मा
मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ,
फूट कर माँ से गले लगना चाहता हूँ।
शहर से अब उकता गया मन मेरा,
गाँव की दोपहरी में जगना चाहता हूँ।
परदेश की सुबह का सौदाई रहा,
फिर आँगन की बारिश में भीगना चाहता हूँ।
समय पर घर आऊँगा चिन्ता ना कर कोई,
वही बात माँ से फिर कहना चाहता हूँ।
बाप की झिड़की वो बेंत की पिटाई,
पास होने पर कहना बढ़िया सुनना चाहता हूँ।
बड़ी बहन का अपने घर से अपने घर आना,
इन्तज़ार की वही नज़र दरवाज़े पे रखना चाहता हूँ।
ऊँचे क़हक़हे और खिलखिला के हँसना,
अपने दोस्तों पर मीठे ताने कसना चाहता हूँ।
कितना लपेट कर रखा है कब से ख़ुद को,
उसके पहलू में पूरा बिखरना चाहता हूँ।
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