चली थी हवा हौंसले से

15-04-2025

चली थी हवा हौंसले से

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 275, अप्रैल द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: मुतकारिब मुसद्दस सालिम
अरकान: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़्तीअ : 122    122    122
 
चली थी हवा हौंसले से
न पंछी उड़े घोंसले से
  
ग़रीबों की कोई क्या सुनता
लगी आस क्यूँ फ़ैसले से
 
किसी तर्ह शन्कर मिले गर
तो बचते नये सिलसिले से
 
यहाँ फूल मुरझा गए थे
कई तो रहे अध-खिले से
 
वहाँ धूप बारिश रही थी
यहाँ मेघ भू से मिले से

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