कुछ ख़्वाब अभी अधूरे हैं

01-04-2025

कुछ ख़्वाब अभी अधूरे हैं

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 274, अप्रैल प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 
कुछ ख़्वाब अभी अधूरे हैं, 
और ग़म के प्याले पूरे हैं। 
 
उस शाम की कोई बात न छेड़, 
उस शाम के बाद अँधेरे हैं। 
 
तुम सौ क़दमों की कहते हो, 
यहाँ क़दम क़दम पर पहरे हैं। 
 
एक जिस्म ही छलनी तो नहीं,
कुछ छाले दिल में ठहरे हैं। 
 
वह उसके वादे पे हँस ही पड़ा, 
वह लफ़्ज़ समन्दर गहरे हैं। 

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