बारिश
हेमन्त कुमार शर्मा
कहीं घर की तबीयत ज़रा ठीक से कहने पर उसकी जर्जर हो रही हालत की तरफ़ ध्यान जाता। जिससे उसकी रिपेयर का सवाल उठ खड़ा होता। इसी कारण किशन इस तरफ़ ध्यान ही नहीं देता। मकान की ख़स्ता हालत से जी घबराने लगता। जेब में फूटी कौड़ी नहीं। इससे अच्छा उस तरफ़ ध्यान ही ना दो। शुतुरमुर्ग की तरह आँखें बन्द कर लो। मुसीबत दिखेगी ही नहीं।
प्लस्तर कई जगह से उखड़ा हुआ था। बारिश में दीवारों और छत पर नमी आ जाती। पतनाले की जगह पर घास फूस उग आया। मिट्टी जम गई थी। रात की लगातार बरसात के कारण भीतर की तरफ़ दीवार से सट कर पानी की एक लकीर बह रही थी। फ़र्श पर पानी इकट्ठा हो गया था। थोड़ा ही था पर पूरे कमरे में फैल गया था।
पतनाले की उपर्युक्त स्थिति का पता चला था, जब किशन ने छत पर जाकर देखा।
पानी रुका पड़ा था। घंटा भर लग गया साफ़ सफ़ाई में।
“कहाँ फँस गया। ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। क्या साफ़ सफ़ाई का मैंने ही ठेका ले लिया है,” झल्लाते हुए अपने आप से कहा।
बारिश की शुरूआत थी। अपने मकान की तरफ़ देख कर वह घबरा पड़ा था। ले-देकर रहने का एक यही स्थान था।
‘कहाँ जाएगा अगर बरसात में मकान . . .’ इस तरह के विचार रह रह कर किशन के ज़ेहन में चलते रहते।
बारिश दिन में तो नहीं थी। पर रात बादल गरजने लगे।
बाहर बादल गरजते अन्दर किशन की नींद उड़ जाती—कहीं मकान ही ना ढह जाए और वह, बीवी बच्चे सब सोते-सोते ही बिना टिकट के ऊपर पहुँच जाएँ।
सुबह भी बारिश नहीं हटी। बाहर, उसके मकान की ओर निचाई थी। पानी का बहाव बरसात में इधर ही हो जाता। बस तेज़ होनी चाहिए, लगातार।
छतरी लेकर मकान से बाहर निकल कर देखा। छत पर जाकर देखा। मकान के चारों तरफ़ पानी बह रहा था।
मटमैला, भूरे रंग का। कच्ची नाली उसके मकान के दाएँ ओर थी; वहाँ पानी तीव्र था। उसने देखा पानी मकान की दीवार से टकरा कर आगे बह रहा था। मकान गिर भी सकता था।
आनन-फ़ानन में बच्चों को बाहर निकाला। आस पड़ोस के लोगों ने जेसीबी मशीन को बुलाकर नाले के पानी को सीधा किया। मिट्टी को हटा कर पानी को बहने दिया।
चुनावों के दिन कुछ महीने में आरंभ होने वाले थे। जिसकी जेसीबी थी उसने एक रुपए नहीं लिया। वह अगले चुनाव में खड़ा होने वाला था। नहीं तो उसके बारे में मशहूर था कि वह एक रुपैया भी किसी के कन्नी नहीं छोड़ता।
बारिश थम गई थी। किशन की सोच भी। मकान फ़िलहाल ढहने से बच गया। पानी धीरे-धीरे सूख ही जाएगा। अगर बारिश जल्दी फिर ना हुई।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सजल
-
- अगर प्रश्नों के उत्तर मिल जाते
- अब किस को जा कर ख़बर लिखाएँ
- अब क्या लिखूंँ
- इधर गाँव जा रहा है
- इस प्रेम मार्ग की बात न पूछ
- इस शहर की कोई बात कहो
- उठोगे अगर
- उसने हर बात निशाने पे कही
- एक इम्तिहान में है
- एक फ़ैसला रुका हुआ है
- कहीं कभी तो कोई रास्ता निकलेगा
- कोई एक बेचैनी सी
- चर्चा आम थी
- जिसके ग़म में तुम बिखरे हो
- डूब जाएगा सारा जहाँ
- नाम याद आता है पीड़ा के क्षण में
- पार हाला है
- बाक़ी कहानी रहनी चाहिए
- मेरी बात का भरोसा करो
- मैं भी तमगे लगा के फिरता हूँ
- वह पथ अगम्य
- सब अपनी कही पत्थरों से
- ज़िन्दगी के गीतों की नुमाइश
- कविता
-
- अगर जीवन फूल होता
- अपने अन्दर
- अब इस पेड़ की बारी है
- आँसू भी खारे हैं
- एक पटाखा फूट गया
- और भी थोड़ा रहेगा
- कल्पना नहीं करता
- कहते कहते चुप हो गया
- काग़ज़ की कश्ती
- किसान की गत
- कोई ढूँढ़ने जाए कहाँ
- क्या हो सकता है क्या होना चाहिए
- क्षण को नापने के लिए
- खिल गया काँटों के बीच
- गाता हूँ पीड़ा को
- घन का आँचल
- जानता हूँ कितना आज्ञाकारी है
- जीवन की पहेली
- जीवन में
- तुम चाँद हो
- तू कुछ तो बोल
- दरिया है समन्दर नहीं
- दिन उजाला
- देखते। हारे कौन?
- नगर के अरण्य में
- नगर से दूर एकांत में
- नदी के पार जाना है
- पर स्वयं ही समझ न पाया
- पाणि से छुआ
- पानी में मिल जाएँगे
- पीड़ा क्या कूकती भी है?
- प्रभात हुई
- प्रेम की कसौटी पर
- बहुत कम बदलते हैं
- बहुत हुई अब याद
- बूँद
- मन इन्द्रधनुष
- मन की विजय
- मुझे विचार करना पड़ता है
- मेरा किरदार मुझे पता नहीं
- मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ
- मैं रास्ता हो गया हूँ
- मैंने भी एक किताब लिखी है
- राम का अस्तित्व
- रेत में दुख की
- वर्षा
- वह बड़ा धुरंधर है
- वो साइकिल
- शहर चला थक कर कोई
- शाह हो या हो फ़क़ीर
- सब भ्रम है
- सब ग़म घिर आए
- साधारण रंग नहीं है यह
- सितम कितने बयाँ
- सुहानी बातें
- हद वालों को बेहद वाला चाहिए
- ख़ुदा इतना तो कर
- नज़्म
- कहानी
- ग़ज़ल
- लघुकथा
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- सांस्कृतिक कथा
- चिन्तन
- ललित निबन्ध
- विडियो
-
- ऑडियो
-