एक न एक दिन बिछड़ना होगा

01-05-2025

एक न एक दिन बिछड़ना होगा

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

वहाँ भीड़ से निकलना होगा, 
इश्क़ है जहाँ फिसलना होगा। 
 
मयकदे के दरवाज़े पे जा सोचा, 
ज़िन्दगी का ज़हर ख़ुद निगलना होगा। 
 
देख यूँ बात से कुछ बनना नहीं है, 
मोती के लिए गहरे में उतरना होगा। 
 
हार में अगर दुखी नहीं होना है, 
जीत की ख़ुशी का पर कतरना होगा। 
 
यह ज़िन्दगी रेल की तरह है, 
नई सवारी के लिए सरकना होगा। 
 
कल पे मत छोड़ अब कोई भी काम, 
पता नहीं कब मिट्टी में पसरना होगा। 
 
कोई नहीं अपना, ठीक, देख लिया, 
अब बस ख़ुद को परखना होगा। 
 
चाहे लाख क़समें खाये, यार मेरे, 
एक न एक दिन बिछड़ना होगा। 

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