शाह हो या हो फ़क़ीर

01-02-2025

शाह हो या हो फ़क़ीर

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

ख़र्च हो जाएँगे
ख़र्च होना होगा, 
हँस लिए हो बहुत
तो अब रोना होगा। 
 
फ़सल पकने लगी
बादल घिरने लगे, 
हम तो जीने के लिए
रोज़ मरने लगे, 
फिर से आने के लिए
फिर से मरना होगा। 
 
शाह हो या कोई हो फ़क़ीर, 
और पत्थर पे चाहे हो लकीर। 
उसकी लाठी से तो
सबको डरना होगा। 
 
बीज कितने भी हो चाहे बहुमूल्य, 
ऊँचे दामों के हों चाहे अतुल्य। 
पेड़ बनने के लिए
मिट्टी में मिलना होगा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
कविता
नज़्म
कहानी
ग़ज़ल
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में