सुमन के द्वारे काँटों की कथा

15-11-2025

सुमन के द्वारे काँटों की कथा

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

घने कोहरे में जैसे वाहन, 
जीवन यों जीए जा रहे हैं। 
 
पता नहीं अपना भी मगर, 
मंज़िल पर चले जा रहे हैं। 
 
व्यर्थ हो गया जीवन दोस्त, 
तुम्हें कुछ से कुछ कहे जा रहे हैं। 
 
फ़लसफ़े आईने ने फ़ेल किये, 
हम तो सूत्रों को गुने जा रहें हैं। 
 
सुमन के द्वारे काँटो की कथा, 
मन में जो आ रहा है कहे जा रहे हैं। 
 
मयकशी के बड़े झंझट हैं यार, 
पीते हैं सच कहे जा रहे हैं। 
 
आईना छुपा देना जब वह आएँ, 
सियासतदां आने जा रहे हैं। 
 
मुक़द्दर की फ़ेहरिस्त में नहीं, 
फिर भी पुकारे जा रहे हैं। 
 
तुझसे मुश्किल होगी मित्र, 
फिर वही क़िस्सा कहे जा रहे हैं
 
बाग़ में फूल हैं तो काँटे भी होंगे, 
बस याद को कहे जा रहे हैं। 

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