मयकशी का क्या ठिकाना

15-09-2025

मयकशी का क्या ठिकाना

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मयकशी का क्या ठिकाना, 
उन आँखों को भूल जाना। 
 
एक शाम रुकी पड़ी है, 
और एक नग़्मा गुनगुना। 
 
बैठें हैं काग़ज़ लेकर, 
और चेहरा वही पुराना। 
 
वहशत है दिल में इतनी, 
भूला मन मुस्कुराना। 
 
आहट सोच की थी, 
दरवाज़ा देखना नज़रें उठाना। 
 
आना नहीं था वह नहीं आए, 
बारिश का था एक बहाना। 

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