सभी आइनों में वही हो

01-06-2025

सभी आइनों में वही हो

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)


122    122    122
 
जला था जहाँ घास सारा, 
उठा है वहीं से दुबारा। 
 
सभी आइनों में वही हो, 
कहाँ है जिसे था सँवारा। 
 
घड़ी थी ग़मों की सुनों भी, 
वहाँ हर किसी को पुकारा। 
 
पड़ी थी उसे चाँदनी की, 
यहाँ चाँद दिल में उतारा। 
 
कभी है अँधेरा उजाला, 
घड़ी भर रहेगा नज़ारा। 

1 टिप्पणियाँ

  • 3 Jun, 2025 10:40 PM

    स्वयं की रचना पर टिप्पणी करने का प्रयास है। बहुत देर तक विचार करने के बाद यह कुछ पंक्तियां लिख पाया हूॅं। अरण्य रोदन की भांति रख देता हूॅं। कोई ध्यान दे या न दे।अपना प्रयत्न जारी है।

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म
कविता
सजल
ग़ज़ल
कहानी
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में